Sunday, April 30, 2017

जीएसटी मंथन -1: GST CHURNING

प्रिय मित्रो!
       सेन्ट्रल जीएसटी एक्ट, 2017 अस्तित्व में आ चुका है। इसी से मिलता-जुलता कानून राज्यों में लागू होना है। इस स्तर पर हम इसके प्राविधानों पर चर्चा कर सकते हैं।  इसी आशय से पोस्ट्स की यह श्रंखला मैं इस अनुरोध के साथ शुरू कर रहा हूँ कि कृपया इसमें भाग लेकर इसे सफल बनाएँ।
मैं यहां पर प्राविधान का उल्लेख करके एक प्रश्न आपके सामने रखूंगा। आप अपनी राय कमेंट्स के अंतर्गगत अंकित कर सकते हैं।  बाद में मैं अपनी राय भी रखूंगा।
प्रश्न - 1
      रजिस्ट्रेशन किस व्यक्ति को लेना है के विवरण सेन्ट्रल जीएसटी एक्ट की धारा 22 में दिए गए हैं।  इस धारा की उपधाराएँ (1) और (2) निम्न प्रकार हैं:
"22. (1) Every supplier shall be liable to be registered under this Act in the State or Union territory, other than special category States, from where he makes a taxable supply of goods or services or both, if his aggregate turnover in a financial year exceeds twenty lakh rupees:
Provided that where such person makes taxable supplies of goods or services or both from any of the special category States, he shall be liable to be registered if his aggregate turnover in a financial year exceeds ten lakh rupees.
(2) Every person who, on the day immediately preceding the appointed day, is registered or holds a licence under an existing law, shall be liable to be registered under this Act with effect from the appointed day."
"appointed day" या "नियत दिन" वह दिन होगा जिस दिन से क़ानून लागू होगा।
22. (1) इस अधिनियम के अधीन प्रत्‍येक प्रदायकर्ता, विशेष प्रवर्ग के राज्‍यों से भिन्‍न ऐसे राज्‍य या संघ राज्‍यक्षेत्र में रजिस्‍ट्रीकृत कराने के लिए दायी होगा, जहां वह माल या सेवाओं या दोनों का कराधेय प्रदाय करता है, यदि किसी वित्‍तीय वर्ष में उसका संकलित आवर्त बीस लाख रूपए से अधिक है :
परंतु जहां कोई व्‍यक्‍ति, विशेष प्रवर्ग के राज्‍यों में से किसी राज्‍य से माल या सेवाओं या दोनों का कराधेय प्रदाय करता है, वहां वह रजिस्‍ट्रीकृत किए जाने का दायी होगा, यदि किसी वित्‍तीय वर्ष में उसका संकलित आवर्त दस लाख रूपए से अधिक है ।
(2) प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति‍ जो, नि‍यत दि‍न से ठीक पूर्ववर्ती दि‍न, वि‍द्यमान वि‍धि‍ के अधीन अनुज्ञप्‍ति‍ धारण करता है, नि‍यत दि‍न से अधि‍नि‍यम के अधीन रजि‍स्‍ट्रीकृत होने के लि‍ए दायी होगा ।
हिंदी वर्जन में कुछ त्रुटियां हो सकतीं हैं, मैंने यह रूपांतरण सेन्ट्रल जीएसटी बिल, 2017 से लिया है। मेरा प्रश्न उपधारा (2) पर आधारित है। प्रश्न निम्नप्रकार है।
 क्या जीएसटी में ऐसे व्यक्तियों को भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा जिन्होंने वैट, सर्विस टैक्स, एक्साइज आदि में रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस ले रखा था किन्तु जिनका माल और सेवाओं का कुल वार्षिक टर्नओवर पांच लाख रूपया से अधिक किन्तु बीस लाख रूपया से अधिक नहीं था।
यदि आपका उत्तर "हाँ" में है तब क्या ऐसे व्यक्तियों / कारोबारियों के साथ अन्याय नहीं होगा क्योंकि अन्य ऐसे व्यक्तियों के लिए रजिस्ट्रेशन तभी लेना होगा जब उनका वार्षिक टर्नओवर 20 लाख रूपया से अधिक होगा।
आपकी सहायता के लिए मैं यह भी इंगित कर रहा हूँ कि संक्रमण कालीन प्राविधानों के अंतर्गत धारा 139 की उपधारा (3) में पुराने उन्हीं व्यापारियों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने की बात कही गयी है जिनको धारा 22 और धारा 24 के प्राविधानों के अनुसार रजिस्ट्रेशन लेना जरूरी नहीं है।
धारा 139 की उपधारा (3) निम्नप्रकार है:
(3) The certificate of registration issued to a person under sub-section (1) shall be deemed to have not been issued
if the said registration is cancelled in pursuance of an application filed by such person that he was not liable to 
registration under section 22 or section 24.
(3) उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति को जारी रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी किया गया नहीं समझा जाएगा यदि उक्त रजिस्ट्रीकरण ऐसे व्यक्ति द्वारा फाइल किए गए किसी आवेदन के अनुसरण में निरस्त है कि वह धारा 22 या धारा 24 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिए दायी नहीं था ।



Saturday, April 29, 2017

बच्चों को डांटने का हक़

मित्रो!
     अपने पुत्र या पुत्री को डांटने - डपटने (scolding) से  पहले माँ - बाप को यह समझना चाहिए कि जो माँ-बाप अपने बच्चों को प्यार नहीं करते उनकी डॉंट का बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ता। ऐसे बच्चों के अंदर विरोध  या प्रतिकार की भावना जन्म ले लेती है।

            जो माँ-बाप बच्चों को प्यार करते हुए बच्चों के साथ आत्मीय सम्बन्ध बना लेते हैं उनकी हलकी डांट का भी बच्चों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव होता है और वह माँ-बाप की अपेक्षाओं के विपरीत कुछ भी करने से डरते हैं।


Saturday, April 22, 2017

ईश्वर के चित्र या सुविचार का मोल

मित्रो !
     ईश्वर का कोई चित्र या मूर्ति जब तक हमारे अंदर ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विस्वास जागृत नहीं करती तब तक हमारे लिए उसकी कोई उपयोगिता नहीं होती। इसी प्रकार जब तक कोई उपदेश या सुविचार हमारे अंदर के जमीर को नहीं झकझोरता तब तक उनका हमारे लिए कोई मोल नहीं होता।

       Unless a picture or idol of God does not awaken our reverence and faith in God, the picture or idol is usefulness for us. Similarly, unless a sermon or good thought shakes the conscience within us, they have no value for us. 


Saturday, April 15, 2017

जीएसटी में टर्नओवर की थ्रेशोल्ड लिमिट Threshold Limit of Turnover in GST

मित्रो !
          जीएसटी में करदेयता के लिए टर्नओवर की सीमा, जिससे टर्नओवर कम होने की स्थिति में सप्लायर जीएसटी के दायरे में नहीं आएंगे, की संस्तुति किये जाने का दायित्व जीएसटी काउन्सिल को संविधान के अनुच्छेद 279A में निम्नप्रकार सौंपा गया है :
(4) The Goods and Services Tax Council shall make recommendations to the Union and the States on—
(a) ...
(b) ... 
(c) ... 
(d) the threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax;

"आवर्त की वह अवसीमा जिसके नीचे माल और सेवाओं को माल और सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी;"
       टर्नओवर की ऐसी देहरी (doorway) या सीमा-रेखा (threshold) जिसके नीचे माल और सेवायें, माल और सेवा कर से मुक्त रखी जा सकतीं हैं। "threshold" शब्द के हिंदी में अर्थ चौखट, दहलीज़, देहली, द्वार, देहरी, सीमा रेखा, डेवढ़ी, आदि होते हैं। जिस तरह मकान या कमरे की देहरी (दहलीज) के बाहर के लोग मकान या कमरे के बाहर होते हैं उसी तरह जहाँ टर्नओवर पर कर लगाया जाता है वहां पर टर्नओवर की थ्रेशोल्ड लिमिट से नीचे टर्नओवर रखने वाले लोग, बिना किसी किन्तु या परन्तु (without any if and but) के कर दायरे के बाहर होते हैं।
     प्रस्तावित जीएसटी लॉ में प्रत्येक ऐसे व्यक्ति जो पंजीकृत है अथवा जिसका पंजीयन प्राप्त करने का दायित्व है के द्वारा माल और सेवाओं की सप्लाई पर कर का भुगतान किये जाने का दायित्व डाला गया है। जीएसटी काउन्सिल द्वारा प्रस्तावित किये गए सीजीएसटी लॉ ड्राफ्ट में पंजीयन का दायित्व निर्धारित करने के लिए अधिनियम की धारा 22 की उपधारा (1) में स्पेशल केटेगरी स्टेट्स के लिए वार्षिक एग्रीगेट टर्नओवर 10 लाख रूपया से अधिक होना और अन्य राज्यों के लिए ऐसा टर्नओवर 20 लाख रूपया से अधिक होना निम्नप्रकार प्रस्तावित किया गया है।
22. (1) Every supplier shall be liable to be registered under this Act in the State or Union territory, other than special category States, from where he makes a taxable supply of goods or services or both, if his aggregate turnover in a financial year exceeds twenty lakh rupees:
Provided that where such person makes taxable supplies of goods or services or both from any of the special category States, he shall be liable to be registered if his aggregate turnover in a financial year exceeds ten lakh rupees.
किन्तु धारा 24 में निम्नलिखित श्रेणियों के व्यक्तियों के मामले में यह प्राविधान लागू नहीं किया गया है। 
(i) persons making any inter-State taxable supply;
(ii) casual taxable persons making taxable supply;
(iii) persons who are required to pay tax under reverse charge;
(iv) person who are required to pay tax under sub-section (5) of section 9;
(v) non-resident taxable persons making taxable supply;
(vi) persons who are required to deduct tax under section 51, whether or not separately registered under this Act;
(vii) persons who make taxable supply of goods or services or both on behalf of other taxable persons whether as an agent or otherwise;
(viii) Input Service Distributor, whether or not separately registered under this Act;
(ix) persons who supply goods or services or both, other than supplies specified under sub-section (5) of section 9, through such electronic commerce operator who is required to collect tax at source under section 52;
(x) every electronic commerce operator;
(xi) every person supplying online information and data base access or retrieval services from a place outside India to a person in India, other than a registered person; and
(xii) such other person or class of persons as may be notified by the Government on the recommendations of the Council.

       जीएसटी काउन्सिल को टर्नओवर की ऐसी धनराशि बतानी थी जिससे टर्नओवर की धनराशि कम होने पर सप्लायर को जीएसटी के दायरे से बाहर रहना था तथा जिस सप्लायर का टर्नओवर जीएसटी कौन्सिल द्वारा बताई गयी लिमिट के बराबर या उससे अधिक होता वह सप्लायर जीएसटी के दायरे में होता और उसे कर देना होता। अगर 10 लाख या 20 लाख के टर्नओवर को संविधान द्वारा बांछित टर्नओवर की अवसीमा मान लें तब जिन सप्लायर का टर्नओवर 10 लाख या 20 लाख होगा वे जीएसटी के दायरे में होंगे किन्तु जीएसटी काउन्सिल द्वारा प्रस्तावित अधिनियम की धारा 24 की उपधारा (1) के अनुसार ऐसे सप्लायर्स को पंजीयन लेना है जिनका टर्नओवर 10 लाख या 20 लाख न होकर इससे अधिक हो अर्थात अगर किसी सप्लायर का वार्षिक टर्नओवर ठीक 10 लाख या 20 लाख है तब उसे पंजीयन लेने की बाध्यता नहीं है और उसकी कर देयता नहीं है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रस्तावित माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 22 की उपधारा (1) में दी गयी 10 लाख या 20 लाख रूपया टर्नओवर की धनराशियां संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लॉज (4) के सब-क्लॉज (डी) में उल्लिखित टर्नओवर की थ्रेसहोल्ड लिमिट नहीं हैं। अधिनियम के किसी अन्य प्राविधान में भी संविधान में उल्लिखित Threshold लिमिट का उल्लेख नहीं है। संविधान के ऊपर संदर्भित प्राविधान में वाक्यांश "The Goods and Services Tax Council shall make recommendations to the Union and the States on-" में "shall" शब्द का प्रयोग किया गया है। स्पष्ट है संविधान संशोधन के समय पार्लियामेंट और स्टेट असेम्बलीज इस बात से अवगत थीं कि जीएसटी कम्प्लायंस की जटिलताओं को देखते हुए एक विशिष्ट सीमा तक टर्नओवर रखने वाले समस्त छोटे सप्लायर्स को जीएसटी के बाहर रखना आवश्यक होगा। जीएसटी काउन्सिल ने प्रस्तावित अधिनियम की धारा 24 लाकर अनेक श्रेणियों के छोटे - छोटे (कम टर्नओवर वाले) सप्लायर्स को भी जीएसटी के दायरे में ला दिया है। मेरे विचार से टर्नओवर की अवसीमा का निर्धारित न किया जाना और प्रस्तावित अधिनियम में धारा 24 का बनाया जाना संविधान के संगत प्राविधानों के अनुरूप नहीं है।
        मेरा विचार है कि छोटे व्यक्तियों को जीएसटी से बाहर रखने के लिए टर्नओवर का निर्धारण करते समय revenue centered approach रही है जबकि टर्नओवर की ऐसी धनराशि सामाजिक-आर्थिक जटिलताओं, जीएसटी के अनुपालन में आने वाली कठिनाइयों और करदाताओं पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को ध्यान में रख कर तय की जानी थी। वैसे भी ध्यान देने योग्य है कि जीएसटी के दायरे से बाहर रहने वाले लोगों को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा नहीं होगी। ऐसी स्थिति में माल या सेवाओं के प्राप्तकर्त्ता (Recipient) की क्षमता में उनके द्वारा माल या सेवाओं के सप्लायर्स को भुगतान की गयी कर की धनराशि तो सरकार को मिलनी ही है।
       इसके अतिरिक्त जीएसटी में स्वैच्छिक पंजीयन प्राप्त करने का भी प्राविधान रखा गया है। ऐसी स्थिति में 10 लाख या 20 लाख रूपया से कम वार्षिक टर्नओवर रखने वाला कोई व्यक्ति यदि यह समझता है कि वह जीएसटी प्राविधानों का अनुपालन कर सकता है तब स्वैच्छिक पंजीयन प्राप्त करके वह कर योग्य व्यक्तियों की श्रेणी में आ सकता है। 
      प्रस्तावित अधिनियम के अनुसार अंतर्राज्यीय सप्लाई करने के मामलों में टर्नओवर की सीमा लागू नहीं की गयी है। अंतर्राज्यीय सप्लाई पर लगने वाले कर में से कर का बंटवारा केंद्र सरकार और उस राज्य के बीच होगा जहां माल या सेवा का सप्लाई का स्थान होगा। अगर छोटे कारोबारियों के मामले में छूट दे दी जाय तब उनके द्वारा की जाने वाली सप्लाई पर कर नहीं मिलेगा किन्तु उन्हें ऐसे माल या सप्लाई में प्रयोग होने वाले इनपुट्स पर दिए गए कर का लाभ नहीं मिलेगा। यह इनपुट टैक्स केंद्र सरकार और उस राज्य के बीच बंटेगा जिसमें कारोबारी स्थित है। 
       हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इंटरनेट के युग में अंतर्राज्यीय स्तर पर (यहां तक कि इंटरनेशनल स्तर पर भी) छोटे स्तर पर माल बेचना आसान हो गया है। अनेक पढ़े - लिखे बेरोजगार युवा इसका लाभ उठाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। हमारे हस्तशिल्पकार भी अपनी वस्तुएं देश के विभिन्न राज्यों या अन्य देशो में भेज रहे हैं। इनमें से अनेक ऐसे लोग हैं जिनका वार्षिक टर्नओवर 10 या 20 लाख से बहुत कम दो-चार लाख रूपया भी नहीं होगा। आप मार्केट प्लेस की सुविधा उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट्स eBay.in या amazon.in किसी अन्य वेबसाइट पर जाइये वहां पर आपको छोटे-छोटे आइटम बेचने वाले अनेक लोग मिल जाएंगे। अगर ऐसे लोगों को जीएसटी के अंतर्गत पंजीयन लेना पड़ा और कर देना पड़ा (जैसा कि प्रस्तावित है) तब उनके सामने अपना तुच्छ व्यापार बंद कर देने का विकल्प ही रह जायेगा। बेरोजगार होने पर पता नहीं वे क्या करेंगे। निर्यात के मामलों में थ्रेशोल्ड लागू करने पर सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा अपितु इनपुट टैक्स के रूप में दी गयी धनराशि केंद्र और राज्य सरकार को प्राप्त होगी जो पंजीयन लेने पर (थ्रेशोल्ड लागू करने पर) प्राप्त नहीं होगी।
         अंत्योदय की बात सभी सरकारें करती है। लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि गरीब व्यक्ति को अमीर व्यक्ति के साथ खड़ा कर देने या गरीब व्यक्ति की गिनती अमीर व्यक्तियों में कर लेने मात्र से गरीब अमीर नहीं हो जाता।
         मेरा विचार है कि कि छोटे उद्योग-धंधों को बचाने के लिए और छोटे कारोबारियों को बेरोजगार होने से बचाने के लिये -
(1) जीएसटी काउन्सिल को टर्नओवर की Threshold लिमिट, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लॉज (4) के उपवाक्य (d) में प्राविधान है, तय करनी चाहिए; और
(2) सरकारों को टर्नओवर की थ्रेशोल्ड लिमिट बिना किसी किन्तु और परन्तु के (without any if and but) राज्यों के अंदर सप्लाई, अंतर्राज्यीय सप्लाई और निर्यात में सप्लाई के सभी मामलों में लागू करना चाहिए।






Saturday, April 8, 2017

आत्मबल वर्धन परमावश्यक

मित्रो !
      हम शारीरिक बल बढ़ाने के लिए जीवन भर तरह - तरह के उपाय करते रहते हैं किन्तु आत्मबल बढ़ाने की ओर कुछ ही लोग ध्यान देते हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आत्मबल  का बढ़ाया जाना शारीरिक बल के बढ़ाये जाने से अधिक महत्व रखता है। धैर्य, साहस, उत्साह, निष्ठा, तन्मयता, निर्भयता, आत्म-विश्वास, दृढ़ता भी आत्मबल के ही प्रकट लक्षण हैं। चारित्रिक विकास और अंतःकरण की शुद्धि के लिए भी आत्मबल की आवश्यकता होती है।
Meanings
आत्मबल = Willpower

वर्धन =Enhancement

Tuesday, April 4, 2017

जीएसटी विधेयकों पर राज्य सभा में विचार

मित्रो !
     जीएसटी से सम्बंधित लोक सभा द्वारा पारित किये विधेयकों पर आज दिनाक 05-04-2017 को राज्य सभा द्वारा विचार (Considered) किया जायेगा। राज्य सभा इन पर अपने सुझाव दे सकती है। विधेयक Money Bill श्रेणी के होने से राज्य सभा के सुझाव लोक सभा पर वाध्यकारी नहीं होंगे।  किन्तु मुद्दे जिन पर राज्य सभा द्वारा विचार किया जा सकता है रोचक हो सकते हैं।  एक मुद्दा, पार्लियामेंट की जानकारी में लाये बिना GST Council की संस्तुतियों पर सरकार द्वारा विधेयकों में उल्लिखित विषयों पर विज्ञप्तियां जारी किये जाने की संवैधानिक वैधता का हो सकता है।  दूसरा मुद्दा समुद्री सीमा में होने वाले संव्यवहारों के सम्बन्ध में समीपवर्ती राज्यों को अधिकार दिए जाने का हो सकता है। चर्चा रोचक होने की संभावना है।
     इस सन्दर्भ में मैं आपके संज्ञान में लाना चाहूंगा कि संविधान के अन्तर्गत किसी विषय पर कानून बनाये जाने का अधिकार केवल संघ के मामले में पार्लियामेंट को और राज्यों के मामले में राज्यों की विधायिकाओं को दिया गया है। पार्लियामेंट या राज्य विधायिकाओं द्वारा बनाये गए कानून (अधिनियमों) से सम्बंधित नियमावली (Rules) और विज्ञप्तियां (Notifications) या अन्य कोई प्राविधान जिन्हें कानून की मान्यता होती है भी कानून का ही भाग होते हैं।  किन्तु ऐसे प्राविधान सरकारों द्वारा या किन्हीं अन्य अधिकारियों या प्राधिकारियों द्वारा बनाये जाते हैं। ऐसे कानून के भाग subordinate legislation कहलाते हैं। इनको बनाने के लिए विधायिकाएं अपने द्वारा बनाये गए कानून जो Primary Legislation होता है के अन्तर्गत  ऐसे अधिकारियों या प्राधिकारियों को दी जातीं हैं। यह शक्तियों का प्रतिनिधायन (Delegation of Powers) कहलाता है। माननीय उच्चतम न्यायलय द्वारा इस सम्बन्ध में दिए गए निर्णय के अनुसार आवश्यक गाइडलाइन्स, पालिसी  के दिए बिना शक्तियों का प्रतिनिधायन अवैध (Invailid) होता है।
              Primary Legislation (मूल अधिनियम) बनाते समय विधायिका संविधान में उपलब्ध प्राविधानों के बाहर नहीं जा सकती है।  Subordinate Legislation  बनाते समय सरकार या अधिकृत प्राधिकारी (जिन्हें भी शक्स्तियों का प्रतिनिधायन किया गया है) दी गयी शक्तियों के बाहर जाकर कानून नहीं बना सकते हैं। दूसरी ओर विधायिकाओं द्वारा असीमित शक्तियों का प्रतिनिधायन भी नहीं किया जा सकता है।
चर्चा राज्य सभा टीवी चैनल पर देखी जा सकती है।



Saturday, April 1, 2017

कर अधिनियम के अपरिहार्य प्राविधान Essential Provisions of A Tax Law

मित्रो !
      भारत के संविधान का अनछेद 265 व्यवस्था करता है कि "No tax shall be levied or collected except by authority of law". यहां पर आपके सामने मैं अपने विचार इस पर रख रहा हूँ कि कर की उगाही से सम्बंधित क़ानून में किन प्राविधानों का अनिवार्य रूप से होना आवश्यक है।
      माननीय उच्चतम न्यायालय ने सर्वश्री भवानी कॉटन मिल्स लिमिटेड वनाम पंजाब राज्य एवं अन्य, निर्णय दिनांक 10 अप्रैल 1967, में अपने द्वारा पूर्व के कुछ अन्य मामलों में दिए गए निर्णयों का उल्लेख करते हुए निम्न लिखित मत व्यक्त किया है :
'This Court, after referring to the observations made earlier in Messrs. Chatturam Horilram Ltd. v. Commissioner of Income Tax, Bihar & (1) [1957] S.C.R. 837 Orissa(1), regarding the three stages in the imposition of tax, being the declaration of liability, assessment, and recovery, said, at p. 852 :'
"If there is a liability to tax, imposed under the terms of the taxing statute, then follow the provisions in regard to the assessment of such liability. If there is no liability to tax there cannot be any assessment either. Sales or purchases in respect of which there is no liability to tax imposed by the statute cannot at all be included in the calculation of turnover for the purpose of assessment and the exact sum which the dealer is liable to pay must be ascertained without any reference whatever to the same.
            There is a broad distinction between the provisions contained in the statute in regard to the exemptions of tax or refund or rebate of tax on the one hand and in regard to the non-liability to tax or non-imposition of tax on the other. In the former case, but for the provisions as regards the exemptions or refund or rebate of tax, the sales or purchases would have to be included in the gross turnover of the dealer because they are prima facie liable to tax and the only thing which the dealer is entitled to in respect thereof is the deduction from the gross turnover in order to arrive at the net turnover on which the tax can be imposed. In the latter case, the sales or purchases are exempted from taxation altogether. The Legislature cannot enact a law imposing or authorising the imposition of a tax thereupon as they are not liable to any such imposition of tax. If they are thus not liable to tax, no tax can be levied or imposed on them and they do not come within the purview of the Act at all. The very fact of their nonliability to tax is sufficient to exclude them from the calculation of the gross turnover as well as the net turnover on which sales tax can be levied or imposed."
इस प्रकार हम देखते हैं कि कर अधिनियम में निम्नलिखित तीन प्राविधानों का होना आवश्यक है:
1. the declaration of tax liability,
2. tax assessment, and
3. tax recovery.
      यदिं किसी कर अधिनियम में इन तीनो में से कोई एक भी प्राविधान उपलब्ध नहीं है तब वह कर उद्ग्रहण का अधिनियम पूर्ण नहीं है। ऐसे में यह भी विचारणीय हो जाता है कि इन तीनों प्राविधानों के किये जाने के बाद बसूली गयी कर की राशि बापस (Refund) करने का प्राविधान कर दिया जाय तब क्या ऐसा "tax levy" का क़ानून वैध क़ानून होगा?
      सर्वश्री भवानी कॉटन मिल्स लिमिटेड वनाम पंजाब राज्य एवं अन्य, निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित व्यवस्था दी है:

            "If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him, with a possible contingency of refund at a later stage, will not make the original levy valid; because, if particular sales or purchase are exempt from taxation altogether, they can never be taken into account, at any stage, for the purpose of calculating or arriving at the taxable turnover and for levying tax."