Saturday, July 30, 2016

इच्छाओं से कैसे निपटें : How to deal with desires

मित्रो !
       किसी कार्य को करने के लिए आवश्यक साधन, सामर्थ्य और ज्ञान के होते हुए भी, इच्छा और इच्छाशक्ति के बिना, न तो कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है और न ही कोई अधूरा कार्य पूरा किया जा सकता है। 
       इच्छा रहित क्रियाशील जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह उपयुक्त और अनुपयुक्त इच्छाओं में विभेद करे और तदुपरान्त उसे चाहिए कि वह उपयुक्त इच्छाओं पर अमल करे और अनुपयुक्त इच्छाओं को दफ़न कर दे।
How to deal with desires
       One cannot think of an active life without desires. A person should differentiate in between appropriate and inappropriate desires and thereafter,. he should work on appropriate desires and should bury the inappropriate desires.

Saturday, July 23, 2016

बिना कर्म किये कुछ नहीं मिलता We don't get anything without doing an act

मित्रो !
    बिना कर्म किये जो कुछ हमें मिल जाता है, हम उसे भाग्य मान लेते हैं। वास्तविकता यह है कि बिना कर्म किये हमें अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं मिलता। जिसे हम भाग्य से मिला समझते हैं उससे सम्बंधित हम अपने द्वारा किये गए कर्म को भूल चुके होते हैं।
   भाग्य में पूर्व जन्मों में किये गए कर्मों के अच्छे या खराब फल होते हैं। भाग्य, वर्तमान या भविष्य में किये जाने वाले कर्मों का निर्धारण नहीं करता।
  कर्म और कर्म - फल सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक कर्म का एक फल होता है, सत्कर्म का फल अच्छा और दुष्कर्म का फल ख़राब होता है। जब किसी जन्म में किये गए किसी कर्म का फल उसी जन्म में प्राप्त नहीं होता तब ऐसे कर्म का फल अगले जन्मों में प्राप्त होता है। जन्म के अन्त में अवशेष रहे कर्मों के फलों से अगले जन्मों के लिए प्रारब्ध या भाग्य का निर्माण होता है।

  हम सभी जानते हैं कि फल से कर्म का निर्माण नहीं होता बल्कि कर्म से कर्म के अनुसार फल का निर्माण होता है। इससे स्पष्ट है कि भाग्य से कर्मों का निर्माण नहीं हो सकता।


Friday, July 22, 2016

कर्म से ही भाग्य का निर्माण : Karm Creates Fate

मित्रो !
    भाग्य में पूर्व जन्मों में किये गए कर्मों के फल होते हैं। भाग्य वर्तमान या भविष्य में किये जाने वाले कर्मों का निर्धारण नहीं करता। 
     कर्म और कर्म - फल का सिद्धान्त यह कहता है कि प्रत्येक कर्म का एक फल होता है, अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा होता है। प्रत्येक जन्म के अन्त में संचित रहे कर्मों का, कर्म के अनुसार, अच्छा या बुरा फल जीव को अगले जन्म में भोगना पड़ता है। जन्म के अन्त में अवशेष रहे कर्मों के फल अगले जन्मों के लिए प्रारब्ध या भाग्य कहलाते हैं।
     विचारणीय यह है कि सभी जीवों के पहले जन्म के प्रारम्भ में प्रारब्ध नहीं रहा था और कम से कम ईश्वर किसी जीव से किसी दूसरे जीव के प्रति बुरा कर्म नहीं करवाता (कोई बुरा कर्म करने के लिए किसी व्यक्ति को प्रेरित करने वाला व्यक्ति भी बुरे कर्म में सहभागी और दंड पाने का भागी होता है। ऐसे में ईश्वर किसी व्यक्ति से कोई बुरा कर्म करबा कर बुरे कर्म में सहभागी और दंड का भागी क्यों बनना चाहेगा) । ईश्वर प्यार और करुणा का सागर है, वह स्वयं निष्पक्ष न्यायाधीश है, वह दयालु है। सभी प्राणी उसकी संतानें हैं।
    ऐसे में स्पष्ट है कि पहला पाप कर्म (या सत्कर्म) और आगे के सभी कर्म करने के लिए जीव को स्वयं अपने अन्दर से प्रेरणा मिली और उसने ऐसा कर्म स्वयं किया। एक जन्म में किये गए ऐसे कर्मों जिनका फल उसी जन्म में नहीं मिलता के फलों से अगले जन्मों के भाग्य का निर्माण हुआ। इस प्रकार भाग्य में केवल पिछले जन्मों के फल (अच्छे या बुरे) होते हैं। किन्तु मनुष्य प्रत्येक जन्म में नए कर्म भी करता है। जीवन निर्वाह के लिए किये गए कर्मों का फल उसी जन्म में मिल जाता है अन्यथा जीवन निर्वाह संभव नहीं है। इससे यह प्रमाणित है कि -
1.
यदि भाग्य है भी तब भी भाग्य सब कुछ नहीं है।
2. मनुष्य स्वयं भाग्य का निर्माता है।
3. मनुष्य सत्कर्म या दुष्कर्म स्वतः करता है, ऐसा करने में उसके भाग्य की कोई भूमिका नहीं होती। 
4.
मनुष्य कर्म का चयन स्वयं करता है। 
     भगवान् श्री कृष्ण द्वारा श्रीमद्भागवद गीता में स्वयं कहा गया है :
              कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन। 
     कर्म करने का अधिकार मनुष्य को है किन्तु फल का नहीं। यदि कर्म के चयन के साथ ही फल के चयन का अधिकार भी मनुष्य के पास होता तब पाप कर्म करने वाला भी पाप कर्म करके भी अच्छे फल का ही चयन करने में सफल हो जाता। तब सारी न्यायिक व्यवस्था ही बदल जाती और शायद इसकी आवश्यकता ही नहीं रह जाती।

Tuesday, July 19, 2016

क्षमा से दोषमुक्ति नहीं मिलती : Forgiveness is not an acquittal

मित्रो !
          क्षमा माँगने और क्षमा कर देने से किये गए गुनाह या गलती की गम्भीरता कम नहीं हो जाती केवल गुनाह या गलती करने वाले और क्षमा कर देने वाले के मध्य भविष्य के लिए रिश्ते सामान्य हो जाते हैं। मनुष्य को प्रयास करना चाहिए कि भविष्य में उससे गुनाह या गलती न हो।
        
       इसका यह अभिप्राय कदापि नहीं है कि क्षमा मांगना और क्षमा कर देना व्यर्थ है। आहत होने के बाद मनमुटाव का समाप्त हो जाना, रिश्तों का सामान्य हो जाना भी अपने में बहुत बड़ी उपलब्धि है। क्षमा माँगने और क्षमा कर देने से मैत्री भाव भी उत्पन्न होता है, विनम्रता आती है और अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
     किसी को कष्ट पहुँचाने के तुम्हारे गुनाह के लिए वह तुम्हें क्षमा कर भी दे लेकिन इससे तुम्हारे द्वारा किये गए गुनाह की गम्भीरता तो कम नहीं होगी। कोशिश करो कि भविष्य में तुमसे कोई गुनाह न हो। 

Saturday, July 16, 2016

सबसे बड़ा आशीर्वाद या शुभकामना : The Supreme Blessings

मित्रो !
     इस नश्वर जगत में ख़ुशी और दीर्घायु के आशीर्वाद या शुभकामना से बढ़ कर कोई दूसरा आशीर्वाद या शुभकामना नहीं है। ऐसा आशीर्वाद केवल ईश्वर ही दे सकता है, मनुष्य केवल इच्छा ही व्यक्त कर सकता है।
   In this mortal world, no other blessing is as big as   blessing of happiness and longevity. Blessing of happiness always includes success, health, wealth, prosperity and satisfaction.




Friday, July 15, 2016

ईश्वर को प्रसन्न कैसे करें : How to Please God

मित्रो !
     एक पुत्र अपने पिता के पद चिन्हों पर चल कर पिता का प्रिय पुत्र बन जाता है और अन्य संतानों की अपेक्षा वह अपने पिता से अधिक प्यार पाता है। ईश्वर हम सब का पिता है, वह सबसे प्यार करता है और वह सभी पर दया करता है। यदि हम भी सभी से प्यार करें और सब पर दया करें तब हम ईश्वर के प्रिय पुत्र बन जांयेंगे।
       When a son walks in footsteps of father, he becomes beloved son of his father and receives more love in comparison to other children. God is father of all of us, he loves all His children and feels pity on all. If we love all and become kind hearted then we will be beloved son of God. 
    जिस तरह एक पुत्र अपने पिता के आदर्शों पर चलने से पिता का प्रिय पुत्र बन जाता है उसी प्रकार कोई भी व्यक्ति ईश्वर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों पर चल कर ईश्वर का प्रिय पुत्र बन जाता है।


Thursday, July 14, 2016

अज्ञानी कौन


मित्रो !

         जो व्यक्ति करने योग्य और न करने योग्य में अन्तर को नहीं जानता अथवा जो व्यक्ति करने योग्य और न करने योग्य में अन्तर को जानते हुए भी वह करता है जो करने योग्य नहीं है वे दोनों व्यक्ति अज्ञानी हैं।

           पहला व्यक्ति ज्ञान के अभाव में अज्ञानी है और दूसरा व्यक्ति इस कारण अज्ञानी है कि जो करने योग्य नहीं है वह वही किये जा रहा है। पहला अनपढ़ है तो दूसरा पढ़ा-लिखा अनपढ़ है।




Wednesday, July 13, 2016

बड़प्पन की निशानी : Signs of Greatness

मित्रो !
      अपनी खुद की गलतियों के लिए क्षमा माँग लेना और दूसरों की गलतियों के लिए उन्हें क्षमा कर देना बड़प्पन की निशानियाँ हैं। केवल विशाल हृदय रखने वाले व्यक्ति ही ऐसा कर सकते हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह विशाल हृदय का स्वामी बने। 

      To tender apology for one's own mistakes and to forgive others for their mistakes are signs of greatness. Only those persons who own vast heart can do so. Man should try to be owner of a vast heart.


Sunday, July 10, 2016

GST Model Law Draft : Levy of Tax and Exemption From Tax

Proposed Goods and Services Tax In India :
मित्रो !
     मॉडल जीएसटी लॉ ड्राफ्ट की धारा ७ की उपधारा (१) में "all intra-State supplies of goods and/or services" पर जीएसटी लगाने का प्राविधान किया गया है, धारा १० में केंद्र और राज्य सरकारों को कतिपय विज्ञापित माल और / या सवाओं की सपलाई पर पूर्ण अथवा आंशिक कर मुक्ति सम्बन्धी विज्ञप्ति जारी किये जाने की शक्तियां दीं गईं हैं। दोनों ही धाराएं आपस में स्वतंत्र हैं। यह उचित नहीं है। 
      ड्राफ्ट की द्वारा २ का क्लाज (४२) "exempt supply" की परिभाषा देता है। परिभाषा के अनुसार इससे तात्पर्य ऐसी सप्लाई से है जिस पर कर देय नहीं है। इसमें अनुसूची (schedule) में दिए हुए माल और सेवाओं की सप्लाई तथा १० के अंतर्गत करमुक्त की जाने वाली सप्लाई को शामिल किया गया है। यदि मैं सही हूँ तब मेरा मानना है कि अनुसूची में सूचीबद्ध किये जाने वाले माल और सेवाओं की सप्लाई के करमुक्त होने का प्राविधान कहीं नहीं किया गया है। धारा ७(१) में "all intra-State supplies of goods and/or services" पर कर लगाए जाने की बात कही गयी है। धारा १० में भी अनुसूची में सूचीबद्ध माल और सेवाओं पर कर न लगाए जाने की बात नहीं कही गयी है। 
    धारा १० में जहां बिना शर्त करमुक्ति सम्बन्धी विज्ञप्ति जारी की जाएगी वहां कर न लगाए जाने का स्पष्टीकरण (Explanation) जोड़ा गया है किन्तु जहां पर आंशिक करमुक्ति की विज्ञप्ति जारी की जाएगी अथवा शर्तों पर पूर्ण करमुक्ति दी जाएगी या राज्य सरकार के आदेश से किसी सेवा पर करमुक्ति का प्राविधान किया जायेगा वहां पर क्या किया जायेगा का उल्लेख नहीं है। 
   मेरे विचार से धारा १० का शीर्षक "Power to grant exemption from tax" भी उचित नहीं है। उचित शीर्षक "Exemption from levy and payment of tax" हो सकता था। इन्हीं तथ्यों तथा कुछ अन्य तथ्यों ने विचाराधीन आर्टिकल लिखने के लिए प्रेरित किया है।
Power to grant exemption from tax
     On June 26, 2016, Empowered Committee of State Finance Ministers has issued Model GST Law draft. Copy of the said GST Law draft is available on the web site of Ministry of Finance, Department of Revenue, and Government of India.
     Proposed GST Law draft proposes levy of tax on “supply of goods or services or both”. Section 7 of the proposed law deals with the incident of levy of tax. This section provides that tax will be levied on all supplies of goods and / or services. Section 10 of the model draft provides that State Government or the Central Government may grant exemption from levy of tax on certain goods and services either absolutely or conditionally. This section 10 runs as follows:
10. Power to grant exemption from tax
(1) If the Central or a State Government is satisfied that it is necessary in the public interest so to do, it may, on the recommendation of the Council, by notification, exempt generally either absolutely or subject to such conditions as may be specified in the notification, goods and/or services of any specified description from the whole or any part of the tax leviable thereon.
Explanation.- Where an exemption under sub-section (1) in respect of any goods and/or services from the whole of the tax leviable thereon has been granted absolutely, the taxable person providing such goods and/or services shall not pay the tax on such goods and/or services.
(2) If the Central or a State Government is satisfied that it is necessary in the public interest so to do, it may, on the recommendation of the Council, by special order in each case, exempt from payment of tax, under circumstances of an exceptional nature to be stated in such order, any goods and/or services on which tax is leviable
(3) The Central or a State Government may, if it considers necessary or expedient so to do for the purpose of clarifying the scope or applicability of any notification issued under sub-section (1) or order issued under sub-section (2), insert an explanation in such notification or order, as the case may be, by notification at any time within one year of issue of the notification under sub-section (1) or order under sub-section (2), and every such explanation shall have effect as if it had always been the part of the first such notification or order, as the case may be.
(4) Every notification issued under sub-section (1) or sub-section (3) and every order issued under sub-section (2) shall
(a) unless otherwise provided, come into force on the date of its issue by the Central or a State Government for publication in the Official Gazette; and
(b) be made available on the official website of the department of the Central or a State Government.
Comments:
      In section 2, in clause (42), term “exempt supply” has been defined as follows:
(42) “exempt supply” means supply of any goods and/or services which are not taxable under this Act and includes such supply of goods and/or services which are specified in Schedule . . . of the Act or which may be exempt from tax under section 10;
Proposed sub-section (1) of section 7 runs as follows:
(1) There shall be levied a tax called the Central/State Goods and Services Tax (CGST/SGST) on all intra-State supplies of goods and/or services at the rate specified in the Schedule . . . to this Act and collected in such manner as may be prescribed.
      It is to be noted that in the proposed sub-section (1) of section 7, term “all intra-State supplies of goods and/or services” includes “exempt supply” and the supplies which may be exempted from levy of tax “partially” under section 10 of the Act. By implication, one may say that for exempt supplies, rate of tax will not be provided in the Schedule referred to in sub-section (1) of section 7 (for convenience, hereinafter referred to as Schedule of taxable supplies) and therefore their supply will enjoy exemption (in absence of rate of tax, tax cannot be quantified). In my opinion, it will not be a correct approach. Moreover, under section 10, the Central Government / State Government may also grant partial exemption from levy of tax on certain supplies mentioned in the Schedule of taxable supplies. Where partial exemption will be granted, in those cases of supply of goods and / services, tax will be determined at rates lower than the rates provided in Schedule of taxable supplies. 
     Clause (42) of section 2 is a definition clause and therefore, by itself, it does not grant exemption on supplies mentioned in exemption Schedule. Supplies to be mentioned or described in exemption schedule, either should have been excluded from tax levy clause in sub-section (1) of section 7 or some specific provision for granting exemption on such supplies should have been made in the proposed Act.
. Had I been asked to draft section 10 of the Model GST Law Draft, I would have put it in following manner:
10. Exemption from levy and payment of tax
(1) No tax shall be levied and paid on supply of goods and / or services mentioned or described in schedule ----- to this Act.
(2) Where the Central / State Government is satisfied that it is necessary in the public interest so to do, it may, on the recommendation of the Council, notify any goods and / or services on supply of which –
(a) no tax shall be levied and paid under this Act; or
(b) no tax shall be levied and paid under this Act subject to fulfillment of such conditions as may be specified in the notification;
(c) tax shall be levied and paid at such rate, lower than the rate provided in schedule ----- for supply of such goods and / or services, as may be specified in the notification. 
(d) tax shall be levied and paid at such rate, lower than the rate provided in schedule ----- for supply of such goods and / or services, as may, subject to fulfillment of such conditions as specified in the notification, be specified in the notification.
(3) Where the Central / State Government is satisfied that it is necessary in the public interest so to do, it may, on the recommendation of the Council, by special order in each case, under circumstances of an exceptional nature to be stated in such order, direct that no tax shall be levied and paid on supply of any goods and / or services specified in such order and upon issue of such order, no tax shall be levied on supply of such goods and / or services on and collected from taxable person in whose case such direction has been issued. 
(4) The Central or a State Government may, if it considers necessary or expedient so to do for the purpose of clarifying the scope or applicability of any notification issued under sub-section (2) or order issued under sub-section (2), insert an explanation in such notification or order, as the case may be, by notification at any time within one year of issue of the notification under sub-section (2) or order under sub-section (3), and every such explanation shall have effect as if it had always been the part of the first such notification or order, as the case may be.
(5) Every notification issued under sub-section (2) or sub-section (4) and every order issued under sub-section (3) shall
(a) unless otherwise provided, come into force on the date of its issue by the Central or a State Government for publication in the Official Gazette; and
(b) be made available on the official website of the department of the Central or a State Government.
The law also proposes for payment of tax on reverse charge basis. Relating to such cases, exemption clause, as new sub-section, may also be added to section 10 in following words:
Where tax is leviable on and payable by the recipient on reverse charge basis on any transaction of supply of any goods and / or services, no tax shall be levied on and paid by supplier of such goods and / or services.




Friday, July 8, 2016

ज्ञान का खण्डन : Rebuttal of Knowledge

मित्रो !
ज्ञान एक सत्य होता है। जिस प्रकार किसी सत्य को नकारा नहीं जा सकता उसी प्रकार ज्ञान को भी झूठा नहीं ठहराया जा सकता। ज्ञान के नाम पर जो कुछ खण्डित किया जा सकता है वह या तो वह अज्ञान होता है या फिर वह अपूर्ण ज्ञान होता है। अनुभव से ज्ञान का सृजन संभव है किन्तु अनुभव से ज्ञान का खण्डन संभव नहीं है।


Thursday, July 7, 2016

GST in India : Proposed Tax Law : स्त्रोत पर कर की कटौती : Tax Deduction At Source Part-II

मित्रो !
    माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा कुछ मामलों दिए गए निर्णयों के प्रकाश में इसी शीर्षक से दिनांक जुलाई 07, 2016 को प्रकाशित पोस्ट में मैंने इस बात पर बल दिया है कि यदि किसी कर-विधि में किसी संव्यवहार पर किसी भी प्राविधान में कोई कर नहीं लगाया गया है (tax is not levied on any transaction in any provision of any tax law) तब उस संव्यवहार पर कर का निर्धारण (Assessment) संभव नहीं है और ऐसी ऐसी स्थिति में कर के रूप में किसी धनराशि की बसूली (Recovery) अवैध है। इस पोस्ट में मेरा उद्देश्य इसी निष्कर्ष के प्रकाश में प्रस्तावित जीएसटी के मॉडल जीएसटी लॉ के ड्राफ्ट में प्रस्तावित प्राविधान स्त्रोत पर कर की कटौती (Tax Deduction at Source) पर चर्चा करना है।
स्टेट जीएसटी एक्ट, सेंट्रल जीएसटी एक्ट और इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के मॉडल ड्राफ्ट जारी किये गए हैं। मॉडल स्टेट और सेंट्रल जीएसटी एक्ट, दोनों एक्ट में राज्यों के अंदर होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) पर कर लगाने, कर का निर्धारण और कर की बसूली से सम्बंधित प्रस्तावित प्राविधान हैं। इंटीग्रेटेड जीएसटी लॉ में अंतर्राज्यीय वाणिज्य या व्यापार के क्रम में होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) तथा भारत के बाहर से आयात के क्रम में हिंे वाली माल की आपूर्ति पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। उल्लेखनीय यह है कि इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के अंतर्गत सेंट्रल जीएसटी एक्ट के अनेक प्राविधान इंटीग्रेटेड जीएसटी में उसी तरह लागू माने जाने का उल्लेख है जैसे वे सीजीएसटी के मामलों में लागू होते हैं। ऐसे संदर्भित प्राविधानों में कर के भुगतान और कर की बसूली से सम्बंधित प्राविधान भी हैं। कर बसूली से सम्बंधित प्राविधानों के अंतर्गत स्त्रोत पर कर की कटौती का प्राविधान भी आता है। सेंट्रल जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट में स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान धारा 37 और धारा 43C में किये गए हैं। धारा 37 की उपधारा (1) व धारा 43क की उपधारा (1) व उपधारा (2) निम्नप्रकार हैं :

37. Tax deduction at source

(1) Notwithstanding anything contained to the contrary in this Act, the Central or a State Government may mandate, -
  • (a) a department or establishment of the Central or State Government, or
    (b) Local authority, or
  • (c) Governmental agencies, or
  • (d) such persons or category of persons as may be notified, by the Central or a State Government on the recommendations of the Council,
    [hereinafter referred to in this section as “the deductor”], to deduct tax at the rate of one percent from the payment made or credited to the supplier [hereinafter referred to in this section as “the deductee”] of taxable goods and/or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council, where the total value of such supply, under a contract, exceeds rupees ten lakh.
    Explanation. – For the purpose of deduction of tax specified above, the value of supply shall be taken as the amount excluding the tax indicated in the invoice.
  • 43C. Collection of tax at source
  • (1) Notwithstanding anything to the contrary contained in the Act or in any contract, arrangement or memorandum of understanding, every electronic commerce operator (hereinafter referred to in this section as the “operator”) shall, at the time of credit of any amount to the account of the supplier of goods and/or services or at the time of payment of any amount in cash or by any other mode, whichever is earlier, collect an amount, out of the amount payable or paid to the supplier, representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it, calculated at such rate as may be notified in this behalf by the Central/State Government on the recommendation of the Council.
    (2) The power to collect the amount specified in sub-section (1) shall be without prejudice to any other mode of recovery from the operator.
    मॉडल स्टेट एक्ट और सेंट्रल एक्ट के ड्राफ्ट्स की धारा 2 की उपधारा (1) के क्लाज (97) में "Taxable supply" निम्नप्रकार परिभाषित की गयी है: “taxable supply’’ means a supply of goods and/or services which is chargeable to tax under this Act;". धारा 7 जो कि Levy and Collection of tax से सम्बंधित है में कर लगाने के लिए "on all intra-State supplies of goods and/or services" का प्रयोग किया गया है। धारा 37 जो स्त्रोत पर कर की कटौती से सम्बंधित है, में शब्दों "to deduct tax at the rate of one percent from the payment made or credited to the supplier [hereinafter referred to in this section as “the deductee”] of taxable goods and/or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council, where the total value of such supply, under a contract, exceeds rupees ten lakh." का प्रयोग किया गया है। 
    GST
    के अंतर्गत goods and / or services पर कर नहीं लगता है, कर goods and / or services की supply पर लगाया जाता है। इसी कारण टर्म "taxable supply" और "exempt supply" प्रस्तावित अधिनियम की धारा 2 में परिभाषित किये गए हैं। इसके विपरीत टर्म "taxable goods", "taxable services" प्रस्तावित अधिनियम में परिभाषित नहीं किये गए हैं। उपधारा (1) में "taxable supply" शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है जब कि उपधारा के अंत में शब्द "such supply" का उल्लेख किया गया है जबकि उपधारा में इन शब्दों के पहले "supply" शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है। मेरे विचार से शब्दों "of taxable goods and / or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council " के स्थान पर "making taxable supply of any goods and / or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council" अथवा "making taxable supply of such goods and / or services as may be notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council शब्दों,का प्रयोग अधिक उचित होगा। 
    जहाँ तक धारा 43C के अंतर्गत उपधारा (1) में शब्दों "collect an amount, out of the amount payable or paid to the supplier, representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it" का प्रयोग हुआ है। विचारणीय है कि

  • (
    1) "supply of goods and /or services" के अंतर्गत "taxable supply" और "exempt supply" दोनों प्रकार की सप्लाई शामिल हो सकतीं हैं किन्तु माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी व्यवस्था के अनुसार "exempt supply" पर अधिनियम में कर देय न होने कारण इसके सम्बन्ध में स्त्रोत पर कर की कटौती किये जाने का प्राविधान नहीं किया जा सकता है।
    (
    2) "representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it" के अंतर्गत निम्नप्रकार की supplies हो सकतीं हैं -
    (i) intra-state supply of goods and / or services;
  • (ii) inter-state supply of goods and / or services taking place in the course of inter-state trade or commerce;
  • (iii) supply of goods and / or services where such supply takes place in the course of the export of the goods and / or services out of the territory of India;
  • (iv) supply of goods and / or services where such supply takes place in the course of the import of the goods and / or services into the territory of India; and
  •  (v) supply of goods and or services taking place outside the State of supplier.
    CGST
    और SGST, दोनों ही केवल राज्य के अंदर होने वाली करयोग्य माल और/ या सेवाओं की आपूर्ति पर (on intra-State taxable supply of goods and / or services) पर कर लगाने की व्यवस्था रखते हैं अर्थात ऊपर क्लाज (i) में अंकित सप्लाई के अतिरिक्त अन्य क्लाजेज (ii), (iii), (iv) and (v) में अंकित सप्लाई पर कर लगाने का अधिकार CGST और SGST, दोनों में नहीं हैं। अतः क्लाज (i) में अंकित सप्लाई के अतिरिक्त अन्य किसी सप्लाई के सम्बन्ध में स्त्रोत पर कर की कटौती का प्राविधान किया जाना अवैध होगा। इसके लिए प्रस्तावित उपधारा (1) में वाक्यांश "representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it" के स्थान पर वाक्यांश "representing consideration towards the intra-State taxable supply of goods and /or services made through it" विधिक रूप से उचित होगा अथवा उपधारा (1) में एक प्रतिबंधात्मक खण्ड जोड़कर क्लाज (i) में अंकित सप्लाई को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की सप्लाई उपधारा (1) से बाहर करनी होंगी। 
    जहाँ तक कि IGST के अंतर्गत Tax Deduction at Source सम्बन्धी प्रविधान बनाने के सम्बन्ध में है, CGST के अंतर्गत रखे जाने वाले प्राविधानों को उसी रूप में अपनाने (By adopting in the same form) से काम नहीं चलेगा क्योंकि IGST के अंदर कर supply of goods and / or services taking place in the course of inter-State trade or commerce और supply in the course of import of the goods and / or services into the territory of India पर कर लगाने का प्राविधान किया जाना है।
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Proposed GST in India : स्त्रोत पर कर की कटौती : Tax Deduction At Source

मित्रो !
      यदि किसी कर-विधि में किसी संव्यवहार पर कोई कर नहीं लगाया गया है (tax is not levied) तब उसका निर्धारण (Assessment) संभव नहीं है और ऐसी ऐसी स्थिति में कर के रूप में किसी धनराशि की बसूली (Recovery) अवैध है। 
स्त्रोत पर कर की कटौती कर बसूली की एक प्रक्रिया है। बिक्री-कर / वैट के अंतर्गत लगभग सभी राज्यों में सकर्म संविदाओं (Works Contracts) के मामलों में करदाता को उसके द्वारा की गयी मॉल की बिक्री पर माल के क्रेता द्वारा माल के मूल्य का भुगतान करते समय, भुगतान की जाने वाली धनराशि में से निर्धारित दर से निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत कर की धनराशि की कटौती करके राजकोष में जमा की जाती है। यह कटौती माल के बिक्री संव्यवहार पर बिक्रेता द्वारा देय हुए कर के प्रति होती है। क्रेता द्वारा जमा की गयी धनराशि बिक्रेता द्वारा भुगतान की गयी कर की धनराशि मानी जाती है।
इस सम्बन्ध में विचारणीय यह है कि अगर किसी संव्यवहार पर कर नहीं लगना है तब क्या उससे सम्बंधित भुगतान करते समय भुगतांकर्त्ता द्वारा स्त्रोत पर कर की कटौती की जानी चाहिए? क्या कोई ऐसा कानून जो ऐसे संव्यवहार, जिस पर कर आरोपनीय नहीं है, से सम्बंधित भुगतान पर भी धनराशि की कटौती करने का प्राविधान रखता है और देय कर से अधिक भुगतान की गयी धनराशि को करदाता को बापस करने का प्राविधान रखता है संवैधानिक रूप से वैध है? इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अनेक मामलों में निर्णय दिया है कि कटौती का ऐसा प्राविधान अवैध है। विधायिका को ऐसा प्राविधान बनाने का अधिकार नहीं है।
 
माननीय उच्चतम न्यायलय ने सर्वश्री पंजाब कॉटन मिल्स लिमिटिड बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब एन्ड एनदर निर्णय दिनांक अप्रैल 10, 1967, में निम्न प्रकार व्यवस्था दी है :

If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him with a possible contingency of refund at a later stage will not make the original levy valid.
 
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत Steel Authority Of India Ltd. Vs. State Of Orissa & Ors. Etc. Etc. Date Of Judgment: 25/02/2000 मामला वर्क्स कांट्रैक्ट से सम्बंधित था। इसमें वर्क्स कांट्रैक्ट के सम्बन्ध में प्राप्त होने वाले सभी भुगतानों से स्त्रोत पर कटौती करने का प्राविधान था जबकि अंतर्राज्यीय बिक्री भी निहित थी जिस पर राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार नहीं था। इसके अतिरिक्त लेबर और सर्विसेज के सम्बन्ध में भी भुगतान होना था, इस पर भी बिक्री कर नहीं देय था। माननीय उच्च न्यायालय ने निम्न लिखित व्यवस्था देते हुए स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान को अवैध ठहराते हुए उसे समाप्त कर दिया। 

In Bhawani Cotton Mills Ltd. vs. State of Punjab & Anr., (1967) 3 SCR 577, this Court said, - If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him, with possible contingency of refund at a later stage, will not make the original levy valid; because, if particular sales or purchase are exempt from taxation altogether, they can never be taken into account, at any stage, for the purpose of calculating or arriving at the taxable turnover and for levying tax.

Section 13AA should have been precisely drafted to make it clear that no tax was levied on that part of the amount credited or paid that related to inter-State sales, outside sales and sales in the course of import, particularly after the previous Section 13AA had been struck down by the Orissa High Court for the reason that it was couched in terms wider than were permissible to the State legislature and that judgment was accepted.

In the result, the appeal is allowed and the judgment and order under appeal is set aside. Section 13AA of the Orissa Sales Tax Act, as amended with effect from 4th October, 1993, is struck down as being beyond the purview of the Orissa State Legislature. Such amount as has been collected from the appellant under the provisions of Section 13AA shall forthwith be refunded by the State.


माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत हिमाचल प्रदेश के एक मामले M/S Nathpa Jhakri Jt. Venture Vs. State Of Himachal Pradesh & Ors. Date Of Judgment: 14/03/2000 (यह मामला भी वर्क्स कांट्रैक्ट से ही सम्बंधित था) जिसमें हिमाचल प्रदेश सरकार के बिक्रीकर कानून में स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान को चुनौती दी गयी थी निम्न लिखित व्यवस्था देते हुए अवैध पाकर समाप्त कर दिया।
To say that if a person is not liable for payment of tax inasmuch as on completion of the assessment refund can be obtained at a later stage is no solace, as noticed in Bhawani Cotton Mills Ltd. v. State of Punjab & Anr., 1967 (3) SCR 577. Further, there is no provision for certification of the extent of the deduction that can be made by the authority. Therefore, we must hold that arbitrary and uncanalised powers have been conferred on the concerned person to deduct upto 4 per cent from the sum payable to the works contractor irrespective whether ultimately the transaction is liable for payment to any sales tax at all. In that view of the matter, we have no hesitation in rejecting the contention advanced on behalf of the State.
प्रस्तावित Goods and Services Tax (GST) से सम्बंधित मॉडल जीएसटी लॉ का ड्राफ्ट (Model GST Law Draft) जारी गया है। इसके अंतर्गत स्टेट जीएसटी एक्ट, सेंट्रल जीएसटी एक्ट और इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट हैं। स्टेट और सेंट्रल जीएसटी, दोनों में राज्यों के अंदर होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। इंटीग्रेटेड जीएसटी लॉ में अंतर्राज्यीय वाणिज्य या व्यापार के क्रम में होने वाली माल या सेवाओं अथवा माल और सेवाओं दोनों की आपूर्ति (supply) तथा भारत के बाहर से आयात के क्रम में हिंे वाली माल की आपूर्ति पर कर लगने, कर का निर्धारण और कर की बसूली के प्रस्तावित प्राविधान हैं। उल्लेखनीय यह है कि इंटीग्रेटेड जीएसटी एक्ट के अंतर्गत सेंट्रल जीएसटी एक्ट के अनेक प्राविधान इंटीग्रेटेड जीएसटी में उसी तरह लागू माने जाने का उल्लेख है जैसे वे सीजीएसटी के मामलों में लागू होते हैं। ऐसे संदर्भित प्राविधानों में कर के भुगतान और कर की बसूली से सम्बंधित प्राविधान भी हैं। कर बसूली से सम्बंधित प्राविधानों के अंतर्गत स्त्रोत पर कर की कटौती का प्राविधान भी आता है। सेंट्रल जीएसटी एक्ट के ड्राफ्ट में स्त्रोत पर कर की कटौती के प्राविधान द्वारा 37 और 43C में किये गए हैं। धारा 37 की उपधारा (1) व धारा 43क की उपधारा (1) व उपधारा (2) निम्नप्रकार हैं :
37. Tax deduction at source
(1) Notwithstanding anything contained to the contrary in this Act, the Central or a State Government may mandate, -
(a) a department or establishment of the Central or State Government, or
(b) Local authority, or
(c) Governmental agencies, or
(d) such persons or category of persons as may be notified, by the Central or a State Government on the recommendations of the Council,
[hereinafter referred to in this section as “the deductor”], to deduct tax at the rate of one percent from the payment made or credited to the supplier [hereinafter referred to in this section as “the deductee”] of taxable goods and/or services, notified by the Central or a State Government on the recommendations of the Council, where the total value of such supply, under a contract, exceeds rupees ten lakh.

Explanation. – For the purpose of deduction of tax specified above, the value of supply shall be taken as the amount excluding the tax indicated in the invoice.
43C. Collection of tax at source


(1) Notwithstanding anything to the contrary contained in the Act or in any contract, arrangement or memorandum of understanding, every electronic commerce operator (hereinafter referred to in this section as the “operator”) shall, at the time of credit of any amount to the account of the supplier of goods and/or services or at the time of payment of any amount in cash or by any other mode, whichever is earlier, collect an amount, out of the amount payable or paid to the supplier, representing consideration towards the supply of goods and /or services made through it, calculated at such rate as may be notified in this behalf by the Central/State Government on the recommendation of the Council.
(2) The power to collect the amount specified in sub-section (1) shall be without prejudice to any other mode of recovery from the operator.
उपर्युक्त प्राविधानों की वैधता पर विचार हम माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए ऊपर संदर्भित निर्णयों के प्रकाश में विचार इस विषय पर शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली अगली पोस्ट में करेंगे। 
यदि किसी कर-विधि में किसी संव्यवहार पर कोई कर leviable नहीं है, तब उसका निर्धारण संभव नहीं है और ऐसी ऐसी स्थिति में कर के रूप में किसी धनराशि की बसूली अवैध है।