Tuesday, August 25, 2015

मांग का मापदण्ड


मित्रो !

मांग सदैव याचक की पात्रता के अनुरूप होनी चाहिए। ऐसा होने पर न तो दाता को मांग मानने से कोई दुःख होता है और न ही याचक को कोई असंतोष होता है।


ईश्वर से याचना


मित्रो !

प्रथम तो ईश्वर से कुछ भी माँगने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वह हमारे कर्मों के अनुरूप फल स्वयं देता है लेकिन फिर भी अगर ईश्वर से हमें कुछ माँगना ही है तब हमें चाहिए कि हम अपनी पात्रता के अनुरूप उससे माँगें। पात्रता के अनुरूप माँग होने पर न तो दाता को कठिनाई होती है और न ही याचक को असंतोष होता है।


Sunday, August 23, 2015

Saturday, August 22, 2015

नियन्त्रित जीवन की खातिर


मित्रो !

        जिन्दगी टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर न भटक जाय इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने लिए एक आदर्श आचार संहिता का निर्धारण करना चाहिये और अपने व्यस्त जीवन से प्रति दिन कुछ क्षण निकालकर अपने द्वारा किये गए कार्य और आचरण का अनुश्रवण कर यह पता लगाते रहना चाहिए कि वह कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रहा है। 

        सफल और सुखी जीवन जीने के लिए जीवन शैली और लक्ष्यों का निर्धारण नितान्त आवश्यक होता है। हम सही रस्ते पर जा रहे हैं अथवा नहीं, इसके सुनिश्चितीकरण के लिए हमें अपने कार्य एवं आचरण की समीक्षा किया जाना भी आवश्यक होता है। मेरे विचार से हमें प्रति दिन सोने से पहले अपने कृत्यों की समीक्षा दैनिक रूप से करते रहना चाहिये। विलम्ब से गलतियों का ज्ञान होने पर उनमें सुधार करना कठिन और कभी - कभी असम्भव हो जाता है। आचरण संहिता के निर्धारण से हमारे लिए मापदंड परिभाषित हो जाते हैं।


प्यार और करुणा


मित्रो !

        प्यार और करुणा भावनायें हैं। नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति के अंतःकरण में इनका जन्म नहीं होता। प्यार और करुणा विहीन व्यक्ति किसी के प्यार और दुःख - दर्द को समझ पाने में असमर्थ रहता है। 
        यदि हम चाहते हैं कि हमारे अन्दर प्यार और करुणा की भावनायें जीवित रहे तब हमें चाहिए कि हम अपने अन्दर सकारात्मक सोच को विकसित करें और नकारात्मक सोच को त्याग दें।


धर्म वही जो हितकारी हो


मित्रो !

        यदि हम चाहते हैं कि धर्म के किन्हीं प्रावधानों की आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता बनी रहे तब हमें आधुनिक जीवन में धर्म के ऐसे प्रावधानों की उपयोगिता और आवश्यकता प्रमाणित करनी होगी। अन्यथा ऐसे प्रावधान धर्म के गुरुओं और ग्रंथों तक ही सीमित होकर रह जायेंगे। 
        If we want to maintain relevance of any provision of a religion with modern life we will have to establish necessity and utility of such provision in modern life. Otherwise, such provisions will remain confined to religious texts and teachers.


विश्वास और विवेक की ठगी


मित्रो !

        आजकल हमारे देश में जनता के साथ ठगी करने वाले कुछ लोग खूब फल-फूल रहे हैं। ऐसे लोग अपने परिवार के सदस्यों, परिचितों अथवा किराये के सेवादारों के समर्थन और तकनीक का सहारा लेकर अपने मायाजाल में भोले-भाले लोगों को फंसाकर उनके विश्वास, विवेक और धन का हरण कर अपने हित साध रहे हैं।
         ऐसे लोग भोली-भाली जनता के बीच अपने समर्थक बैठा देते हैं। ऐसे समर्थक उनकी हाँ में हाँ मिलाकर और उनकी महिमा का मिथ्या गुणगान कर जनता को भ्रमित कर देते हैं। भोली-भाली जनता उनके मायाजाल में फंस जाती है और उन्हें अपना विश्वास दे बैठती है, और फिर ऐसी ठगी करने वाले लोग जनता को अपनी उँगलियों पर नचाते रहते हैं। अगर कोई कभी विरोध की आवाज उठाने का प्रयास करता है तब ठगी करने वाले के समर्थक इतना शोर-सराबा कर देते हैं कि विरोध करने वाले की आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज की तरह दब कर रह जाती है।


मोक्ष की प्रासंगिकता


मित्रो ! 

        आधुनिक जीवन में मोक्ष का विचार अधिकाँश लोगों को असंगत और वैराग्य की ओर धकेलने वाली अवधारणा लगती है। किन्तु रोग, बुढ़ापा और मृत्यु के भय से छुटकारा पाने के सन्दर्भ में जन्म और मृत्यु के बन्धन से मुक्ति का विचार असंगत नहीं ठहराया जा सकता।


मृत्यु कष्टदायी नहीं होती


मित्रो !

        शरीर छोड़ने की प्रक्रिया में जीवात्मा अत्यंत शूक्ष्म न के बराबर समय लेती है। मृत्यु कोई कष्ट नहीं देती। रोग, दुर्घटना या पीड़ा से होने वाले कष्ट मृत्यु पूर्व के होते हैं। जीवन, जड़ और चेतन के प्रति हमारा मोह तथा ऐसे मोह से उत्पन्न चिंतायें मृत्यु से भय के कारण बनते हैं।


चिंताओं का विनाश चिन्तन से


मित्रो !

        अपने शरीर के लिए सुख - साधन जुटाना और शरीर को रोग, बुढ़ापा तथा मृत्यु से मुक्ति दिलाना अधिकांश व्यक्तियों के लिए चिन्ता तो कुछ के लिए चिन्तन का विषय बने रहे हैं। कालान्तर में चिन्तन घटा है और चिन्तायें बढ़ीं हैं। विडम्बना यह है कि मनुष्य अब तक यह नहीं समझ पाया है कि चिन्तन की लौ ही चिंताओं को भश्म कर सकतीं हैं।


ज्ञान दुःख हर लेता है


मित्रो !

         जब कोई अपने प्रियजन के दिवंगत होने पर शोक में डूबा होता है तब यह विशुध्द ज्ञान कि जो आया है उसका एक दिन जाना निश्चित है, हर किसी को एक न एक दिन जाना है, ऐसे में शोक करना व्यर्थ है, ही होता है जो सांत्वना प्रदान करता है और दुःख को कम करता है।


सज्जन भी हम, दुर्जन भी हम


मित्रो !

श्रीमद भगवद गीता के अनुसार -
       मनुष्य के अन्दर सतो, रजो और तमो तीन तरह के गुणों वाली प्रकृति होती है। प्रकृति में यह तीनों गुण साम्यावस्था में नहीं रहते हैं। किसी भी समय पर मनुष्य की प्रकृति में जिस गुण की प्रधानता होती है वह उसी गुण से प्रेरित हुआ सात्विकी, राजसी अथवा तामसी प्रकृति का आचरण करता है। 
आचरण पर नियंत्रण कैसे करें?
       सात्विकी भोजन, अच्छी संगति या अच्छे साहित्य के अध्ययन या श्रवण से हमारे अन्दर की प्रकृति का सतो गुण प्रेरित होता है तथा वह प्रकृति के अन्य गुणों रजो और तमो पर बलबती हो जाता है, वहीँ पर तामसी भोजन, कुसंगति और घटिया साहित्य के अध्ययन या श्रवण से हमारे अन्दर की प्रकृति का तमो गुण प्रेरित होकर सतो और रजो गुणों पर बलबती हो जाता है। जिस समय प्रकृति का जो गुण बलबती होता है उसी से प्रेरित हुए हम सात्विकी, राजसी अथवा तामसी प्रकृति का आचरण करते हैं।


प्राकृतिक संसाधनों को बचायें


मित्रो ! 

        यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का आवश्यकता से अधिक दोहन करते हैं तब ऐसा करके हम दूसरों का हक़ छीनने के साथ - साथ अपनी संतानों का भी हक़ छीनते हैं। हमें ऐसे अमानवीय कृत्य से बचना चाहिये। साथ ही हम जितना प्रकृति से लें उसकी भरपाई पर भी हमें विचार करना चाहिए।
        अपनी संतानों का हक़ तो पशु - पक्षी भी नहीं छीनते। हम तो इस धरा पर ईश्वर की सर्वोत्तम रचना हैं। तब हम परिंदों से भी गया - गुजरा आचरण क्यों कर रहे हैं?


बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति

मित्रो !
        बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लक्ष्य पर केंद्रित भगीरथ प्रयासों की आवश्यकता होती है। यदि लक्ष्य असाध्य नहीं है तब इसको प्राप्त करने का कोई न कोई कारगर तरीका अवश्य होता है। अतः साध्य लक्ष्य को पूरा करने में हमें कोई कोर कसर नहीं छोड़नी चाहिए।

भगीरथ प्रयास
       एक पौराणिक कथा के अनुसार भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो जाने के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। उनके भस्म हो जाने से उस स्थान पर साठ हज़ार राख की ढेरियाँ लग गईं। गंगा स्वर्ग में थीं, उनका पृथ्वी पर लाना अत्यंत कठिन कार्य था। फिर भी राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की शांति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लेन के लिए घोर तपस्या की और अंततः वे गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल सफल हुए। उनके प्रयासों को ही भगीरथ प्रयास कहा जाता है। 


सच्ची श्रद्धांजली

मित्रो !
        किसी महापुरुष की मृत्यु पर उसके प्रति सच्ची श्रद्धांजली उसकी पुण्यात्मा द्वारा छोड़े गए पार्थिव शरीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर शीश झुका लेने मात्र से पूरी नहीं होती, सच्ची श्रद्धांजली तो उस जीवात्मा द्वारा जिए गए आदर्शों को आत्मसात कर लेने, उसके बताये मार्ग पर चलने और उसके द्वारा छोड़े गये अधूरे कार्यों को पूरा करने में निहित होती है।

        मृत्यु के उपरांत पार्थिव शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं रह जाता जिसके प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो सके।